Gunjan Kamal

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ऊंट के मुॅंह में जीरा ( हास्य व्यंग ) ‌

# मुहावरों की दुनिया प्रतियोगिता 


कभी-कभी इंसान इतना बेबस हो जाता है कि उस परिस्थिति में वह क्या करें और क्या ना करें उसे समझ में ही नहीं आता है? कुछ  ऐसी ही परिस्थिति में मेरा दोस्त रजत वर्मा पड़ गया था, शुक्र है कि उसका साथ उस वक्त उस नई आई हुई पड़ोसन ने दिया जिसे वह मन ही मन में और हम दोस्तों के साथ बातचीत करते हुए अपने गड्ढे पड़े हुए चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान रखकर भाभी जी कहता था। वैसे रजत की नई आई हुई पड़ोसन! उम्र में उससे काफी छोटी थी लेकिन उसका पति लगभग हमारी ही उम्र का लगता था  इसलिए रजत ने नई  आई हुई पड़ोसन को भाभी जी कहना शुरू कर दिया तो हम भी पीछे रहने वालों में से तो थे नही, हम भी उन्हें भाभी जी कहकर बुलाने लगें।

चलिए! आप सभी को अपने दोस्त रजत वर्मा से मिलवाता हूॅं। हम दोनों ही अपने कर्मक्षेत्र से सेवानिवृत्त हो चुके हैं और सेवानिवृत्ति के बाद के जीवन का लुत्फ उठा रहे हैं। मेरा घर रजत के मकान के बिल्कुल पास तो नहीं है हाॅं! ज्यादा दूर भी नही है।

सात - आठ आडे़ - तिरछे मकानों की छतों पर नजर पड़ने के  बाद ही मेरे घर का छत दिखाई पड़ जाता है। जीवन क्या है, ये नही समझते हुए जिंदगी की दौड़-धूप और अपनी जिम्मेदारियों के निर्वहन में हम सभी खुश रहना तक भूल जाते हैं, ऐसे में सेवानिवृत्ति के बाद हम सभी दोस्तों ने एक दिन बातों के क्रम में ही यें बातें की कि   जीवन में घटित  छोटी-छोटी बातों को ही हम अपने हॅंंसने - बोलने का आधार बना लेते हैं और फिर क्या था,उसी दिन से हम सभी दोस्तों ने उस पर अमल करना भी शुरू कर दिया था।

हम मर्दों की यह शुरू से ही खासियत रही है कि हम अपनी उस पत्नी को जो अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक हमारा साथ निभाती है, हमारा ख्याल रखती है यहां तक कि हमारे सुख - दुख में हमारे साथ रहती है उसकी महत्वपूर्णता हम उसके जीवन में उसे कभी नहीं दे पाते, हमें इसका एहसास होता भी है तो अलग होने के बाद।

अलग होने से मेरा तात्पर्य यहां पर यह था कि जब हमारा साथ हमेशा के लिए छूट जाता है यानी कि हमारी पत्नियां हमारे सफर को बीच में ही छोड़कर मौत की आगोश में चली जाती है तब जाकर हमें अपनी उस पत्नी की याद आती है जिसने हमें यदि रुलाया भी है तो हंसाने और हमारे जीवन को खुशनुमा बनाने  का काम भी उसी ने किया है।

खैर छोड़ो इस बात को! अभी तो हम सभी दोस्तों की जीवनसंगिनी  हमारे साथ ही है तो इस पर चर्चा करना बेकार ही है। ना तो आप समझेंगे और ना ही मैं आपको समझा पाऊंगा इसीलिए इस विषय को यहीं पर छोड़ते हैं और अपने दोस्त रजत के साथ घटित इस घटना की तरफ रुख करते हैं जो दो  दिन  पहले ही उसके साथ घटित हुई थी।

आज भी इस बात का अफसोस हो रहा है कि काश! मैं अपनी जीवनसंगिनी के कहने पर उस दिन उनके मायके ना गया होता तो मैं उस दृश्य का साक्षात गवाह बनकर आप सभी को यह बातें बता रहा होता लेकिन कोई बात नहीं, शायद! भाभी जी के साथ समय बिताने का कोई और मौका मिल जाए, इस उम्मीद में हम लगे हैं और आगे भी लगे रहेंगे।

"अरे भाई साहब! आप मेरे पति को जब तक यह नहीं कह देते कि हमारी श्रीमती जी ने जो भी खाना, आज के लिए बनाया था वह अब खत्म हो गया है तब तक आपके द्वारा मेहमान नवाजी का लुफ्त उठाते हुए इनके मुंह में जाता हुआ हर निवाला  'ऊंट के मुॅंह में जीरे के समान' ही  होगा।"

भाभी जी द्वारा कहीं गई यह बात रजत मेरे दोस्त रजत व को कुछ देर बाद समझ में आई क्योंकि इससे पहले खाने पर बुलाए गए किसी मेहमान द्वारा ऐसी मेहमान नवाजी का मौका आज तक उसे नसीब नहीं हुआ था, उसकी छोड़े! मैंने भी आज तक एक- दो बार छोड़कर वह भी  शादी समारोह में सम्मिलित ऐसे किसी शख्स को नहीं देखा जो अकेले ही १०-१५ आदमियों का खाना खाने के बाद भी यह कहे कि यह खाना तो 'ऊंट के मुंह में जीरे के समान' ही मुझे लगा, यहां पर मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि मेरा पेट तो भरा  ही नहीं।

अरे इतना खाना खाने के बाद भी तेरा पेट नहीं भरा तो क्या तू कुंभकरण की औलाद है? ऐसा मैं तो अभी मन ही मन सोच रहा हूॅं लेकिन मैंने सुना कि रजत भी भाभी जी के ' ऊंट के मुॅंह में जीरा ' वाली बात कहने पर उनके पति की तरफ देखते हुए मन ही मन में यही सोच रहा था।

उस घटना के बाद मेरा भी मन भाभी जी को देखते ही बहुत बार पूछने का यह हुआ कि भाभी जी क्या भाई साहब रोज ही इतना खाते हैं?  लेकिन कही भाभी जी को बुरा ना लग जाए, यह सोच कर बने बनाए रिश्ते को बिगाड़ना मुझे समझदारी वाली बात नहीं लगी।

रजत भी हमारे पड़ोस में आए हुए उस 'ऊंट के मुॅंह में जीरा' वाले भाई साहब से संबंध बिगाड़ने में एक क्षण की  की भी देरी नहीं लगाता लेकिन ऐसा वह कैसे कर सकता था?

मेरी तरह आप लोग भी समझदार हैं और इस बात को समझ ही गए होंगे कि रजत और हम सभी दोस्त भाई साहब से संबंध तो बिगाड़ सकते हैं लेकिन खूबसूरत और स्मार्ट भाभी जी से संबंध बिगाड़ना हम लोगों के वश की बात नहीं और जो हमारे वश की बात नहीं, हम दोस्तों में से किसी ने भी आज तक वह काम किया ही नहीं है।

  हम दोस्तों ने उस दिन की 'ऊंट के मुॅंह में जीरे'  वाली घटना से सबक लेते हुए, एक  लंबी परिचर्चा के उपरांत ये निष्कर्ष निकाला है कि खाने के मामले में उस 'ऊंट के मुंह में जीरे' समान व्यक्ति को हम में से कोई भी, कभी भी अपने घर पर खाने पर नहीं बुलाएगा लेकिन हाॅं इतना जरूर कर सकते हैं कि भाभी जी के हाथों का खाना खाने के अवसर हम जैसे आज तक ढूंढते आ रहे हैं वह आगे भी ढूंढते ही रहेंगे।

                                             धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻

गुॅंजन कमल 💗 💞 💗


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4 Comments

बेहतरीन

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Pranali shrivastava

18-Jan-2023 04:54 PM

शानदार प्रस्तुति 👌

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Mahendra Bhatt

13-Jan-2023 10:09 AM

शानदार

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